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टीएमयू में छात्राओं की रहस्यमयी मौतें : आत्महत्या या साजिश?

टीएमयू में छात्राओं की रहस्यमयी मौतें : आत्महत्या या साजिश?

मुरादाबाद/पाकबड़ा।
टीएमयू एक बार फिर सुर्खियों में है। नर्सिंग की छात्रा दीक्षा पाल (20 वर्ष) की तीसरी मंजिल से कूदकर मौत के बाद एक बार फिर वही सवाल गूँज रहा है—क्या यह आत्महत्या है या किसी सुनियोजित साजिश का हिस्सा?
गुरुवार दोपहर बीएससी नर्सिंग तृतीय वर्ष की छात्रा दीक्षा परीक्षा देकर कक्षा से बाहर निकली और सीधे कॉलेज की बिल्डिंग की तीसरी मंजिल पर पहुँच गई। कुछ ही मिनटों बाद वह ज़मीन पर पड़ी मिली। अस्पताल ले जाया गया लेकिन जान बचाई नहीं जा सकी।

👉साल दर साल दोहराई जाती त्रासदी

यह कोई पहली घटना नहीं है। पिछले कई वर्षों से इसी विश्वविद्यालय परिसर में कई छात्राओं की मौतें एक जैसी परिस्थितियों में हुई हैं।
ज़्यादातर मामले नर्सिंग और मेडिकल कोर्स से जुड़े छात्राओं के हैं।

👉मौत का तरीका लगभग एक जैसा—बिल्डिंग की ऊपरी मंजिल से कूदना।

👉घटना के बाद हर बार विश्वविद्यालय प्रशासन “आत्महत्या” बताकर मामले को दबाने की कोशिश करता है।

👉पैटर्न साफ है—
एक ही कोर्स, एक ही बिल्डिंग और लगभग समान हालात। सवाल उठता है कि आखिर क्यों सिर्फ इसी संस्थान में छात्राओं के साथ ऐसा हो रहा है?

👉छात्राओं पर भारी पढ़ाई का बोझ या कुछ और?

👉नर्सिंग और मेडिकल की पढ़ाई कठिन मानी जाती है। लंबी क्लासें, इंटर्नशिप, हॉस्पिटल ड्यूटी और एग्ज़ामिनेशन के दबाव से छात्राएं तनावग्रस्त हो जाती हैं। लेकिन अगर सिर्फ दबाव ही कारण होता, तो यही घटनाएं अन्य मेडिकल कॉलेजों में भी होतीं।

👉फिर क्यों ये हादसे बार-बार सिर्फ टीएमयू कैंपस में घटते हैं?

👉शोषण और उत्पीड़न की आशंकाएँ

👉छात्राओं के परिजनों और कुछ पूर्व छात्रों का कहना है कि यूनिवर्सिटी में मानसिक उत्पीड़न, सख़्त अनुशासन और अत्यधिक दबाव आम बात है।

👉हॉस्टल और कैंपस प्रशासन की मनमानी से छात्राएं खामोश रहती हैं।

👉घटनाओं की गहराई से जाँच कभी नहीं होती। हर बार मामले को “आत्महत्या” करार देकर फाइल बंद कर दी जाती है।

👉सुरक्षा इंतज़ाम नदारद

👇विश्वविद्यालय की ऊँची इमारतों में सुरक्षा के पर्याप्त इंतज़ाम नहीं हैं।

👇तीसरी और चौथी मंज़िल पर खुली बालकनी व खिड़कियों पर सुरक्षा ग्रिल नहीं।

👇न तो सीसीटीवी फुटेज सार्वजनिक किए जाते हैं और न ही स्वतंत्र जाँच की अनुमति दी जाती है।

👇यहाँ तक कि कई परिजनों ने यह भी आरोप लगाया कि लड़कियों को धक्का दिया जाता है और उसे आत्महत्या का रूप दे दिया जाता है।

परिवारों का दर्द

दीक्षा पाल जैसी बेटियाँ किसान परिवारों से आती हैं। परिवार उनके भविष्य के सपनों को पूरा करने के लिए कर्ज लेकर पढ़ाई कराता है। लेकिन बार-बार ऐसे हादसों ने अभिभावकों के दिलों में डर बसा दिया है।

“हमने अपनी बेटी को डॉक्टर-नर्स बनाने भेजा था, लाश बनकर घर आई। क्या यही है पढ़ाई का मंदिर?” – एक आहत पिता का सवाल।

👉प्रशासन और पुलिस की भूमिका पर सवाल

हर बार पुलिस जांच और पोस्टमार्टम की औपचारिकता पूरी करती है। लेकिन आज तक किसी मामले में ठोस निष्कर्ष सामने नहीं आए।

न किसी शिक्षक या स्टाफ पर कार्रवाई।

न किसी सुरक्षा खामी को दूर करने की पहल।

न ही छात्राओं के लिए काउंसलिंग या हेल्पलाइन।

क्या है सच्चाई?

लगातार हो रही घटनाओं से साफ है कि यह केवल व्यक्तिगत आत्महत्या का मामला नहीं हो सकता। यहाँ कोई न कोई बड़ा कारण, दबाव या साजिश छिपी है।

जरूरी है कि—

👉हर घटना की स्वतंत्र न्यायिक जांच कराई जाए।

👉विश्वविद्यालय की इमारतों में सुरक्षा बैरियर और सीसीटीवी अनिवार्य किए जाएं।

👉छात्राओं के लिए मानसिक स्वास्थ्य काउंसलिंग और हेल्पलाइन शुरू की जाए।

दोषी पाए जाने पर प्रशासनिक अधिकारियों पर भी कार्रवाई हो।

निष्कर्ष

दीक्षा पाल की मौत ने एक बार फिर उस पुराने जख्म को हरा कर दिया है, जिसमें छात्राओं की लाशें सवाल पूछ रही हैं—
👉“क्या हमने सच में आत्महत्या की, या हमें धक्का दिया गया?”

👉अगर प्रशासन और सरकार ने अब भी आँखें मूँद लीं, तो टीएमयू जैसे संस्थान शिक्षा के मंदिर नहीं बल्कि मौत के अड्डे बनकर रह जाएंगे।

👉टीएमयू बना मौत का अड्डा?

पिछले वर्षों में कई छात्राओं की रहस्यमयी मौत, अब दीक्षा पाल का मामला – आत्महत्या या हत्या?

👉फिर वही पैटर्न

दीक्षा पाल हापुड़ जिले के हरगांव गांव निवासी किसान जनम सिंह की बेटी थी। गुरुवार दोपहर करीब तीन बजे उसने परीक्षा दी और कक्षा से निकलते ही सीधे कॉलेज बिल्डिंग की तीसरी मंज़िल पर जा पहुँची। कुछ देर बाद उसकी लाश नीचे ज़मीन पर मिली। अस्पताल ले जाया गया, लेकिन इलाज के दौरान मौत हो गई।

यह हादसा सुनने में “आत्महत्या” लगता है, मगर जब पिछले वर्षों की घटनाओं पर नज़र डालते हैं तो पैटर्न साफ दिखता है—

ज़्यादातर मौतें नर्सिंग और मेडिकल कोर्स से जुड़ी छात्राओं की।

स्थान वही—टीएमयू की ऊँची बिल्डिंग।

तरीका वही—ऊपरी मंज़िल से छलांग।

और हर बार निष्कर्ष वही—“आत्महत्या।”

सवालों के घेरे में यूनिवर्सिटी

पढ़ाई का दबाव निस्संदेह है, लेकिन अगर यह अकेला कारण होता, तो अन्य मेडिकल कॉलेजों में भी ऐसी घटनाएँ उतनी ही संख्या में होतीं। सवाल यह है कि क्यों लगातार मौतें सिर्फ टीएमयू में हो रही हैं?

क्या छात्राओं को किसी मानसिक, शैक्षणिक या प्रशासनिक दबाव में धकेला जा रहा है?
क्या यह आत्महत्या नहीं बल्कि सुनियोजित हत्या है, जिसे हर बार “आत्महत्या” का रूप दे दिया जाता है?

सुरक्षा इंतज़ाम नदारद

👉टीएमयू की इमारतों की ऊँचाई और खुली बालकनियाँ खुद सवाल खड़े करती हैं।

👉तीसरी-चौथी मंज़िल पर सेफ्टी ग्रिल नहीं।

👉सीसीटीवी फुटेज न तो सार्वजनिक होते हैं, न ही जाँच एजेंसियों को दिए जाते हैं।

👉कैंपस में कोई मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग सिस्टम मौजूद नहीं।

👉परिवारों का दर्द और आरोप

हर बार एक गरीब परिवार अपनी बेटी को सपनों के साथ कॉलेज भेजता है और उसकी लाश घर लौटती है।दीक्षा पाल के परिजनों का भी यही कहना है कि उनकी बेटी ने कभी हार नहीं मानी, उसे आत्महत्या करने के लिए मजबूर किया गया होगा।

कुछ अभिभावकों ने आरोप लगाया कि छात्राओं को धक्का दिया जाता है और उसे आत्महत्या घोषित कर दिया जाता है।

प्रशासन और पुलिस की कार्यप्रणाली

अब तक की घटनाओं में पुलिस और विश्वविद्यालय प्रशासन की भूमिका संदेह के घेरे में रही है।

हर मामले में केवल औपचारिकता: पोस्टमार्टम, रिपोर्ट और “आत्महत्या” का ठप्पा।

अब तक न किसी अधिकारी पर कार्रवाई हुई, न सुरक्षा व्यवस्था में बदलाव।

छात्राओं के मानसिक स्वास्थ्य और उत्पीड़न की कोई स्वतंत्र जाँच नहीं कराई गई।

जरूरी है निष्पक्ष जाँच

दीक्षा पाल की मौत ने पुराने जख्म फिर हरे कर दिए हैं।
बार-बार एक ही तरह की मौतें बताती हैं कि यहाँ कोई गहरी खामी या साजिश है।

जरूरी है कि—

पूरे मामले की न्यायिक जाँच हो।

यूनिवर्सिटी प्रशासन को कटघरे में खड़ा किया जाए।

सुरक्षा इंतज़ाम और सीसीटीवी निगरानी सख्ती से लागू हो।

छात्राओं के लिए काउंसलिंग और हेल्पलाइन अनिवार्य हों।

निष्कर्ष

छात्राओं की लाशें हमें यह सोचने पर मजबूर कर रही हैं—
“क्या यह आत्महत्या है, या किसी अदृश्य हाथों से धक्का?”

अगर सरकार और प्रशासन ने अब भी आँखें मूँद लीं, तो टीएमयू आने वाली पीढ़ियों के लिए शिक्षा का मंदिर नहीं, मौत का अड्डा बन जाएगा।

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