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गोवर्धन पूजा 2024: महत्व, पूजन विधि, शुभ मुहूर्त और पूरी जानकारी

गोवर्धन पूजा 2024: महत्व, पूजन विधि, शुभ मुहूर्त और पूरी जानकारी

गोवर्धन पूजा के विषय में संपूर्ण जानकारी निम्नलिखित है, जो इस पर्व के महत्व, पूजन विधि, शुभ मुहूर्त, और अन्य पहलुओं पर विस्तार से प्रकाश डालती है।

गोवर्धन पूजा का महत्व

गोवर्धन पूजा या अन्नकूट पर्व दिवाली के अगले दिन मनाया जाता है। यह पर्व भगवान कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत की पूजा के प्रसंग से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि द्वापर युग में गोकुलवासियों ने इंद्र देव की पूजा करना बंद कर दिया था और गोवर्धन पर्वत की पूजा की थी, जिससे इंद्रदेव क्रोधित हो गए। उन्होंने गोकुल पर भारी वर्षा का प्रकोप लाने का प्रयास किया, परंतु भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर पूरे गाँव को उस प्रकोप से बचा लिया। इस दिन भगवान कृष्ण और गोवर्धन पर्वत की पूजा कर उनके संरक्षण के लिए आभार प्रकट किया जाता है।

गोवर्धन पूजा विधि

गोवर्धन पूजा में विशेष रूप से अन्नकूट का आयोजन किया जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण को विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाकर पूजा की जाती है। पूजन विधि निम्नलिखित है:

सामग्री

1. गोबर (गोवर्धन पर्वत बनाने के लिए)

2. दीपक

3. अगरबत्ती

4. पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और चीनी)

5. ऋतु फल

6. पुष्प

7. तुलसी पत्र

8. भोग के लिए पकवान

9. जल कलश

पूजन विधि

1. स्थान की तैयारी: गोवर्धन पूजा के लिए एक स्वच्छ स्थान चुना जाता है। घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन पर्वत की प्रतिमा बनाई जाती है। इस प्रतिमा को पुष्पों और तुलसी के पत्तों से सजाया जाता है।

2. पूजा की शुरुआत: सबसे पहले दीप जलाकर भगवान गणेश का आह्वान किया जाता है ताकि पूजा में कोई विघ्न न आए। फिर भगवान श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत का ध्यान करते हुए पूजा आरंभ करें।

3.गोवर्धन पर्वत की पूजा: गोबर से बने गोवर्धन पर्वत को जल, पंचामृत, और गंगाजल से स्नान कराएं। इसके बाद उन्हें चंदन का लेप लगाएं और पुष्प अर्पित करें।

4. अन्नकूट प्रसाद: भगवान को अन्नकूट के रूप में 56 या 108 प्रकार के पकवानों का भोग लगाया जाता है। ये व्यंजन विभिन्न प्रकार की मिठाइयों, सब्जियों, और अनाजों से बनाए जाते हैं।

5. आरती: भगवान कृष्ण और गोवर्धन पर्वत की आरती उतारी जाती है। आरती के बाद भक्तगण प्रसाद ग्रहण करते हैं और एक-दूसरे को बांटते हैं।

गोवर्धन पूजा के शुभ मुहूर्त

गोवर्धन पूजा का मुहूर्त दिवाली के अगले दिन, प्रतिपदा तिथि को होता है। शुभ मुहूर्त का निर्धारण पंचांग के अनुसार किया जाता है। गोवर्धन पूजा के लिए मध्याह्न का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है।

प्रारंभ समय: प्रातः 6:00 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक

पूजा का मुख्य समय: सुबह 8:30 बजे से 10:30 बजे तक

प्रमुख पर्व और आयोजन

गोवर्धन पूजा के दिन अन्य कई धार्मिक अनुष्ठान भी किए जाते हैं:

1. गायों की पूजा: इस दिन गौ माता की पूजा का विशेष महत्व है। गाय को भोजन कराकर उसका आशीर्वाद लिया जाता है।

2. गोवर्धन परिक्रमा: भक्त गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं। गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हुए “गोवर्धन महाराज की जय” और “श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारी” जैसे जयकारे लगाए जाते हैं।

पूजन में भोग और प्रसाद

अन्नकूट के दिन भगवान को विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। पारंपरिक व्यंजनों में पूरी, कचौरी, मिठाई, खीर, और तरह-तरह की सब्जियाँ शामिल होती हैं। इसे बहुत श्रद्धा और प्रेम से बनाया जाता है। इसके पीछे यह भावना होती है कि भगवान को अधिक से अधिक व्यंजन अर्पित कर उन्हें प्रसन्न किया जाए।

कथा का महत्व

गोवर्धन पूजा के साथ जुड़ी प्रमुख कथा के अनुसार, एक बार जब गोकुलवासी देवराज इंद्र की पूजा कर रहे थे, तो श्रीकृष्ण ने उनसे गोवर्धन पर्वत की पूजा करने को कहा। इंद्रदेव ने क्रोधित होकर मूसलधार वर्षा शुरू कर दी। तब श्रीकृष्ण ने अपनी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर सभी को सुरक्षित किया। यह पर्व हमें यह शिक्षा देता है कि प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा करना हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है।

गोवर्धन पूजा और परंपराएँ

गोवर्धन पूजा विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न प्रकार से मनाई जाती है। ब्रज क्षेत्र (मथुरा, वृंदावन) में इस पर्व का विशेष महत्व है। यहाँ बड़े उत्सवों का आयोजन किया जाता है और हजारों श्रद्धालु गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने आते हैं।

गौ-पूजन: गाँवों में गोवर्धन पूजा के दिन विशेष रूप से गौ-पूजन किया जाता है। गायों को नहलाकर, सजाकर, उन्हें ताजे चारे का भोग लगाया जाता है।

संकीर्तन और भजन: इस दिन कृष्ण भक्ति के भजन गाए जाते हैं। जगह-जगह संकीर्तन का आयोजन होता है और भक्ति में लीन होकर लोग झूमते हैं।

पर्यावरणीय संदेश

गोवर्धन पूजा हमें यह भी सिखाती है कि हम प्रकृति का संरक्षण करें और उसकी रक्षा करें। भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र देव की पूजा को छोड़कर गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का निर्देश दिया, जिससे यह संदेश मिलता है कि हमें अपनी प्राकृतिक धरोहरों और संसाधनों का सम्मान करना चाहिए।

निष्कर्ष

गोवर्धन पूजा प्रकृति के प्रति सम्मान और भक्ति की भावना का प्रतीक है। यह पर्व हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति बाहरी आडंबर में नहीं, बल्कि हृदय की शुद्ध भावना में होती है। भगवान कृष्ण ने अपने जीवन में जो शिक्षाएं दीं, वे हमें सही मार्ग पर चलने और पर्यावरण संरक्षण का महत्व समझने में सहायक हैं।

यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि पर्यावरणीय जागरूकता के दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। गोवर्धन पूजा के माध्यम से लोग अपने जीवन में प्रकृति का सम्मान करना सीखते हैं और भक्ति भाव से भगवान को याद करते हैं।

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