भैया दूज एक प्रमुख हिंदू पर्व है, जिसे भाई और बहन के रिश्ते को और भी मजबूत बनाने के लिए मनाया जाता है। यह पर्व दीवाली के दो दिन बाद, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इसे देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे कि पश्चिम बंगाल में **भाई फोटा**, उत्तर प्रदेश में **भैया दूज**, और महाराष्ट्र में **भाऊ बीज**।
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Toggleभैया दूज का महत्व
भैया दूज भाई-बहन के रिश्ते की पवित्रता और स्नेह को दर्शाने वाला पर्व है। यह त्योहार रक्षाबंधन की तरह ही भाई-बहन के बंधन को और भी खास बनाता है। जहां रक्षाबंधन पर बहनें भाइयों को राखी बांधती हैं और उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं, वहीं भैया दूज पर भाई अपनी बहन के घर जाकर तिलक करवाते हैं और बहनों की सुरक्षा का वचन देते हैं।
भैया दूज पर बहनें अपने भाइयों के माथे पर तिलक लगाकर उनकी लंबी उम्र और स्वास्थ्य की कामना करती हैं। इसके बदले में भाई अपनी बहनों को उपहार देकर उनके प्रति सम्मान और आभार प्रकट करते हैं। यह पर्व उस आदान-प्रदान और प्रेम को दर्शाता है, जो भाई और बहन के रिश्ते में जीवनभर बना रहता है।
भैया दूज की कथा
भैया दूज से जुड़ी अनेक पौराणिक कथाएं हैं। इनमें से कुछ प्रमुख कथाएं निम्नलिखित हैं:
1. **यमराज और यमुनाजी की कथा**
सबसे प्रसिद्ध कथा के अनुसार, यमराज (मृत्यु के देवता) और उनकी बहन यमुनाजी के बीच गहरा प्रेम था। यमुनाजी अपने भाई यमराज को बहुत प्यार करती थीं और हमेशा चाहती थीं कि वह उनके घर आएं। एक दिन यमराज अपनी बहन यमुनाजी के घर पहुंचे। यमुनाजी ने अपने भाई का स्वागत करते हुए उन्हें प्यार से भोजन कराया और उनकी लंबी उम्र की कामना की। यमराज ने प्रसन्न होकर अपनी बहन से वरदान मांगने को कहा। यमुनाजी ने वरदान में यह मांगा कि जिस प्रकार आज के दिन यमराज उनके घर आए हैं, वैसे ही हर साल भाई अपनी बहन के घर आए और अपनी बहनों को सम्मान दें। साथ ही, जो भी बहन इस दिन अपने भाई को तिलक लगाएगी और भाई उसे उपहार देगा, उसकी रक्षा यमराज स्वयं करेंगे। तभी से भैया दूज का पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई।
2. **कृष्ण और सुभद्रा की कथा**
एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण जब नरकासुर का वध करके लौटे तो उनकी बहन सुभद्रा ने उनका स्वागत किया। सुभद्रा ने श्रीकृष्ण के माथे पर तिलक लगाया, उन्हें मिठाई खिलाई और उनकी लंबी उम्र की कामना की। इससे प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने अपनी बहन को आशीर्वाद दिया और यह परंपरा बन गई कि हर साल इस दिन बहनें अपने भाइयों को तिलक लगाकर उनकी रक्षा और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।
भैया दूज का धार्मिक और सामाजिक महत्व
भैया दूज का धार्मिक महत्व तो इसके पौराणिक कथाओं में ही स्पष्ट हो जाता है। यह त्योहार भाई-बहन के रिश्ते में स्नेह, विश्वास और सहयोग को मजबूत करता है। समाज में यह पर्व इस बात को भी दर्शाता है कि परिवार का महत्व कितना बड़ा है। भाई-बहन के रिश्ते में चाहे कितनी भी दूरियां आ जाएं, यह त्योहार उन्हें पास लाने का एक माध्यम है। यह पर्व हमारे समाज में भाई-बहन के प्रेम और कर्तव्यों को भी रेखांकित करता है।
भैया दूज मनाने की विधि
भैया दूज के दिन बहनें अपने भाइयों को आमंत्रित करती हैं और पूरे विधि-विधान से उनका तिलक करती हैं। तिलक करने के लिए बहनें चावल, हल्दी, कुमकुम और पान के पत्ते का प्रयोग करती हैं। इसके बाद भाई को मिष्ठान्न खिलाया जाता है। पूजा के बाद भाई अपनी बहनों को उपहार और आशीर्वाद देते हैं। कई परिवारों में इस दिन भाई-बहन साथ मिलकर भोजन भी करते हैं, जिससे पारिवारिक प्रेम और जुड़ाव और गहरा हो जाता है।
भैया दूज के शुभ मुहूर्त
भैया दूज के तिलक के लिए शुभ मुहूर्त का खास ध्यान रखा जाता है। शुभ मुहूर्त में तिलक करने से भाई-बहन दोनों के लिए शुभ फलदायक होता है। आमतौर पर तिथि और मुहूर्त पंचांग के अनुसार निर्धारित किए जाते हैं। इस दिन का शुभ मुहूर्त कुछ घंटे का होता है, और बहनें इसी समय के भीतर अपने भाइयों को तिलक करने का प्रयास करती हैं।
भैया दूज का वैज्ञानिक दृष्टिकोण
भैया दूज केवल धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व नहीं है, बल्कि इसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी है। इस दिन जब बहनें भाइयों के माथे पर तिलक लगाती हैं, तो यह प्रक्रिया शरीर के स्वास्थ्य से भी जुड़ी होती है। माथे पर तिलक लगाने से तनाव कम होता है और मन शांत रहता है। इसके अलावा, भाई-बहन के बीच स्नेह और प्यार का वातावरण दोनों के मानसिक स्वास्थ्य को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
भैया दूज का आधुनिक स्वरूप
समय के साथ भैया दूज के मनाने के तरीके में भी बदलाव आया है। आजकल के व्यस्त जीवन में, भाई-बहन दूर-दूर रहते हैं, लेकिन फिर भी इस पर्व के माध्यम से वे एक-दूसरे से जुड़ने का प्रयास करते हैं। सोशल मीडिया और ऑनलाइन वीडियो कॉल की मदद से भी भाई-बहन इस दिन अपने प्यार का इजहार करते हैं। हालांकि, जिन परिवारों में यह संभव हो पाता है, वहां भाई-बहन मिलकर पारंपरिक विधियों से भैया दूज का उत्सव मनाते हैं।
देश के विभिन्न भागों में भैया दूज के नाम और रूप
भारत में भैया दूज को विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नामों और रूपों में मनाया जाता है:
– **उत्तर भारत में**: इसे भैया दूज या भाई दूज कहा जाता है, जहां पारंपरिक रूप से बहनें भाइयों को तिलक करती हैं।
– **पश्चिम बंगाल में**: इसे भाई फोटा कहते हैं। इस दिन बहनें भाइयों को चंदन से तिलक करती हैं और विशेष व्यंजन बनाकर उन्हें खिलाती हैं।
– **महाराष्ट्र और गुजरात में**: इसे भाऊ बीज कहते हैं। यहां भी भाई अपनी बहनों के घर जाकर तिलक करवाते हैं और बहनों को उपहार देते हैं।
– **नेपाल में**: इसे भाई टीका के नाम से जाना जाता है। यह पर्व वहां विशेष धूमधाम से मनाया जाता है, और इस दिन बहनें भाइयों को पंचरंगी तिलक लगाती हैं।
भैया दूज से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
1. भैया दूज का महत्व केवल भाई-बहन के रिश्ते तक सीमित नहीं है। यह पर्व परिवार की एकता और समाज में भाईचारे को भी बढ़ावा देता है।
2. इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र के लिए उपवास भी रखती हैं और विशेष मंत्रों का उच्चारण करती हैं।
3. भैया दूज के दिन कई जगहों पर भाई अपनी बहनों को खास पकवान खिलाते हैं, और यह समय परिवार के साथ बिताने का होता है।
भैया दूज का संदेश
भैया दूज केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह भाई-बहन के बीच अटूट प्रेम और एक-दूसरे के प्रति जिम्मेदारी को भी दर्शाता है। यह पर्व हर साल हमें इस रिश्ते की विशेषता और उसकी मिठास की याद दिलाता है। भैया दूज पर मिलने वाले आशीर्वाद और शुभकामनाएं इस रिश्ते को और भी पवित्र बनाती हैं।
भैया दूज का पर्व हमें यह सीख देता है कि चाहे जीवन में कितने भी उतार-चढ़ाव क्यों न आएं, भाई-बहन का रिश्ता हमेशा अटूट और पवित्र रहेगा। यह पर्व पारंपरिक रूप से मनाने के साथ-साथ नए जमाने की तकनीकों के माध्यम से भी इसे यादगार बनाने का अवसर प्रदान करता है।