119 वर्ष , पूर्व जंगल में प्रगट हुए थे पातालेश्वर महादेव
119 वर्ष पूर्व ढाक, बेरी, खजूर व पतेल के जंगल में प्रगट हुए थे पातालेश्वर महादेव
सौरभ मिश्र (उप संपादक),सागर और ज्वाला न्यूज
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Toggleबहजोई। सनातन धर्म में यह मान्यता है कि भगवान शिव सर्व व्याप्त है । शायद इसीलिए भारत वर्ष में हर थोड़ी दूर पर भगवान शिव विभिन्न रूपों में व्याप्त है । इसी तरह से सादातबाड़ी का प्राचीनका पातालेश्वर महादेव मंदिर करीब 119 साल पुराना है। सावन के महीने में मंदिर के आसपास मेले जैसा माहौल रहता है। आसपास के जिलों से भी श्रद्धालु पवित्र शिवलिंग का जलाभिषेक करने मंदिर में पहुंचते हैं। प्रत्येक सोमवार को भी सुबह से शाम तक पूजा-अर्चना के लिए श्रद्धालुओं का तांता रहता है।
कोतवाली क्षेत्र के गांव सादातबाड़ी (धीमर वारी) में वर्तमान में जहां प्राचीन पातालेश्वर महादेव मंदिर स्थित है, वहां पहले किसी समय ढाक, बेरी, खजूर व पतेल का जंगल था। यह जानकारी देते हुए मंदिर के महंत मोहर गिरि ने बताया कि उन्नीसवीं शताब्दी में भगवान शिव पातालेश्वर बाबा इस स्थान पर प्रकट हुए थे। महंत के मुताबिक जब ग्रामीणों ने घास काटते समय शिवलिंग रूपी पातालेश्वर महादेव को पहली बार देखा, तो महज एक पत्थर मानकर एक ग्रामीण ने घास काटने के लिए खुरपी रगड़कर उसकी धार तेज करनी चाही। तब उस ग्रामीण को एक प्रकार की चुंबकीय शक्ति का एहसास हुआ और उसके शरीर में कंपन पैदा हो गया। इस बात को ग्रामीण ने गांव में बताया। इसके बाद गांव के बुजुर्गों ने भी यह चमत्कार देखा और भगवान पातालेश्वर का प्रकट होना मानकर आसपास साफ-सफाई कर एक चबूतरा बना दिया।इसके बाद यहां पूजा-अर्चना व भजन-कीर्तन होने लगा। उन्होंने बताया कि उस समय के जमींदार की ओर से यह चमत्कार नहीं माना गया और जमींदार की ओर से पवित्र शिवलिंग उखड़वाने के लिए तरह-तरह के प्रयास किया गए, लेकिन पवित्र शिवलिंग को कोई हिला भी नहीं सका। बाद में एक व्यक्ति ने शिवलिंग पर कुल्हाड़ी से वार किया था। इस पर शिवलिंग से रक्त की धार बह निकली और कुल्हाड़ी मारने वाला व्यक्ति दृृष्टिहीन हो गया। इसके बाद पवित्र शिवलिंग के चबूतरे पर मठिया बना दी गई।
बाद में 7 सितंबर 1902 में बहजोई के एक जमींदार साहू भिखारीदास की ओर से मंदिर का निर्माण कार्य प्रारंभ कराया गया। महंत ने बताया कि श्रावण मास में प्रत्येक वर्ष पूरे महीने मेले जैसा माहौल रहता है। संभल जिला समेत बुलंदशहर, बदायूं, मुरादाबाद व जिला अलीगढ़ तक से श्रद्धालु मंदिर में जलाभिषेक व पूजा-अर्चना करने मंदिर में पहुंचते हैं।