पता नहीं वो सहाब न जाने कहाँ होंगे ? जिसने मेरी जिंदगी को बदल दिया
बहुत ही सुंदर रोचक कहानी अंत तक पूरा अवश्य पड़े
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Toggleप्रस्तुत करता: वतन कुमार जी
आज मेरा जन्म दिन था। मेरी पत्नी और बच्चे मेरे दोस्तो और उनके परिवार के स्वागत में व्यस्त थे। कुछ रिश्तेदार भी आए हुए थे। टेबल सजाई जा रही थी। और पूरे घर आंगन में गुब्बारे वह भी रंग बिरंगे देख कर बच्चे चहक रहे थे। उपहारों के रंग बिरंगे पैकेट्स थे। सभी तैयारियों में लगे थे।जन्म दिन का बड़ा सा केक टेबल पर रखा हुआ था।
और मैं न जाने कहाँ अपनी पुरानी यादों मे खो गया। स्मृति मुझे कई साल पीछे ले आई.. जब मैं मात्र 12-13 साल का था। शहर में सड़क किनारे एक पेड़ के नीचे मै बैठा रहता। और राहगीर आने-जाने वालों के सभी के सामने हाथ फैलाकर भीख मांगता था। शाम तक इतना हो पैसा हो जाता कि मेरा व मेरी माँ का पेट भर जाता था उसी रास्ते से एक दिन एक साहब गुजर रहे थे वे शहर में अभी अभी नए आए थे। अपने ऑफिस को पैदल हि जाते थे। मैं भी दौड़ कर उनके पास गया। हाथ जोड़कर नमस्ते करके फिर उनके सामने अपना हाथ फैला दिया। मुझे उनसे कुछ ज्यादा ही उम्मीद थी कि साहब है! तो बीस पचास का नोट तो हाथ में आएगा ही
लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उल्टे उनके भाव से साफ जाहिर हुआ कि मेरा इस तरह से हाथ फैलाना उन्हें बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा। फिर भी उन्होंने पांच का सिक्का हथेली पर रख दिया।
दो चार दिन तो इस तरह रोज मांगते रहने पर उन्होंने कुछ नहीं कहा। परन्तु वह भी दो चार रुपए हाथ में रख दिया करते। पर उनके इस मिजाज से मुझे लगता था कि उन्हें मेरा भीख मांगना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था।
रोज रोज भीख मांगने से एक दिन उन्हें मुझ पर बहुत गुस्सा आ गया। उन्होंनेे मुझे बहुत बुरी तरह से डांट दिया। और कहने लगे कि तुम्हे, “शर्म नहीं आती भीख मांगते हुए। अच्छे-भले सेहतमंद इंसान हो, मेहनत करके खाओ। तुम्हारी इस तरह से सभी लोग भीख मांगने लग जाए तो देश में कमाएगा कौन? और फिर हमारे देश के जितने भी भीख मांगने वाले हैं, अगर सभी मेहनत करने लग जाएँ तो हमारे देश कि अर्थव्यवस्था को काफी गति मिल सकती है।” सहाब के चेहरे पर इतना गुस्सा कि साहब के चेहरे पर गुस्से को भापकर मैं चुपचाप गर्दन नीची कर पेड़ की तरफ वापस लौट गया।
अब साहब मुझे रुपया नहीं देते। मैं दौड़ कर उनके पास भी नहीं जाता। बस पेड़ की छाया में बैठा रहता। साहब भी तिरछी नजरों से घूरते हुए तेजी से निकल जाते।
एक दिन साहब खुद मेरे पास आए। पास बैठे और हालचाल पूछा। मुझे लगा आज साहब मूड में हैं, मुझे बीस-पचास का नोट दे देंगे, पर ऐसा नहीं हुआ। और क्या हुआ कि उन्होने ने पैसों की जगह एक बड़ा सा पैकेट देकर मुझ से कहने लगे कि, “आज मैं तेरे लिए एक बहुत बडा उपहार लेकर आया हूँ।
फिर क्या साहब ने पैकेट खोला, उसमें से एक वजन तौलने वाली एक मशीन निकली और मुझे वो मशीन देते हुए बोले, “आज से तुम्हें भीख मांगने की जरूरत नहीं है। ये मशीन तुम अपने सामने रख देना। लोग अपने आप आएंगे और तुलेंगे और तुझे दो,पांच रुपए देकर हि जाएंगे। इससे तुझे किसी के सामने हाथ भी फैलाना नहीं पड़ेगा। और तुम अपने मेहनत की खाओगे भीख मांगकर नही ।” इतना कहकर उन्होंने मेरे गाल पर हल्की सी थपकी दी और मेरे पास से चले गए। उनकी ये बातें सुनकर मेरी आँखें भर आई।
अब वे हमेशा मेरे पास खुद रुकते। मेरा हालचाल पूछते, मेरी दिन भर की कमाई के बारे मे पूछते। कभी-कभी हंस कर मजाक में कहते, “पैसों की बचत करके रखना, तेरी शादी जो करनी है।”
धीरे-धीरे पैसों की बचत भी होने लगी। उस बचत से मैंने चाय की दुकान खोल ली। दुकान चल निकली तो धंधे का विस्तार कर लिया और एक इज्जतदार जिंदगी जीने लगा। आज भरा पूरा परिवार, पैसा, गाड़ी, अच्छे दोस्त सब कुछ है। किसी चीज की कमी नहीं है। पर साहब जाने कहाँ होंगे। उनका तो कुछ ही महीनों बाद तबादला हो गया था।
”हैप्पी बर्थडे टू यू” गाने के साथ मेरा ध्यान टूटा और मैं वर्तमान में आया। मैंने केक पर लगी मोमबत्तियाँ बुझाई और केक कट किया। सब ने मुझे उपहार भेंट किए, पर मुझे वह क़ीमती उपहार याद आ रहा था, जिसने मेरी जिंदगी को बदल दिया था। उसी उपहार ने मुझे इस मुकाम तक पहुँचाया।
अब बस पता नहीं वो सहाब न जाने कहाँ होंगे
इस कहानी के माध्यम से हमारा उद्देश्य भाई- बहनों को प्रोत्साहित व प्रेरित करना हि हमारा फर्ज़ है। यदि आज मानवजाति का एक भी हिस्सा असफल रह जाए तो हम कैसे सफल हो सकते है।
वो साहब, जहाँ भी होंगे सैंकड़ों लोगो को नई राह दिखा रहे होंगे। और फिर अपने साहब को याद करके हुए मेरी आँखें नम हो आई।