हरियाली तीज उत्सव: चारों ओर फैला उल्लास, महिलाओं में खुशी की लहर
सावन मास का प्रमुख पर्व हरियाली तीज पूरे भारतवर्ष में विशेष उल्लास और उमंग के साथ मनाया जाता है, विशेष रूप से महिलाओं के लिए यह दिन अत्यंत शुभ और आनंददायक होता है। यह त्योहार प्रकृति की हरियाली, प्रेम, सौंदर्य और सौभाग्य का प्रतीक है। हरियाली तीज न केवल सांस्कृतिक महत्व रखती है बल्कि महिलाओं के सामाजिक समागम, पारंपरिक रीति-रिवाजों और आध्यात्मिक आस्था का भी प्रतीक बन गई है।
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Toggle???? उत्सव की छटा और सजावट
हरियाली तीज के दिन मंदिरों, घरों और सार्वजनिक स्थलों को फूलों, बंदनवारों और रंग-बिरंगी सजावट से सजाया जाता है। जगह-जगह झूले डाले जाते हैं, जिन पर महिलाएं पारंपरिक गीत गाते हुए झूलती हैं। वातावरण हरियाली और उल्लास से भर जाता है, जो मानसून के सौंदर्य को और भी जीवंत कर देता है।
???? महिलाओं की विशेष भागीदारी
इस पावन पर्व पर महिलाएं विशेष साज-सज्जा करती हैं। हरे रंग की साड़ी, चूड़ियाँ, मेहंदी और पारंपरिक आभूषण पहन कर वे एक-दूसरे को शुभकामनाएं देती हैं। विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखद वैवाहिक जीवन की कामना करते हुए व्रत रखती हैं। वहीं कुंवारी कन्याएं मनचाहा वर पाने की प्रार्थना करती हैं।
???? लोकगीतों और नृत्य से सजी शामें
हरियाली तीज के अवसर पर महिलाएं पारंपरिक लोकगीत गाती हैं और समूहों में लोकनृत्य करती हैं। कुछ स्थानों पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन होता है जिसमें तीज की कथा, शिव-पार्वती विवाह प्रसंग, और भक्ति गीतों का सुंदर संयोजन देखने को मिलता है।
???? धार्मिक अनुष्ठान
हरियाली तीज के दिन महिलाएं शिव-पार्वती की पूजा करती हैं। व्रत रखकर माता पार्वती से अपने वैवाहिक जीवन में प्रेम, सौहार्द और समृद्धि की प्रार्थना करती हैं। पवित्र कथा श्रवण, आरती, और व्रत कथा के माध्यम से पर्व की आध्यात्मिकता भी उजागर होती है।
महिला सशक्तिकरण और एकजुटता का संदेश
यह पर्व न केवल धार्मिक है बल्कि सामाजिक एकता और महिला सशक्तिकरण का भी उदाहरण प्रस्तुत करता है। महिलाएं आपसी मेल-मिलाप, सहयोग और प्रेम से जुड़े इस पर्व में एक-दूसरे की खुशियों में शामिल होती हैं और समाज को एकजुट रहने का संदेश देती हैं।
निष्कर्षतः, हरियाली तीज केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि उत्सव है प्रकृति के सौंदर्य, स्त्री शक्ति और वैवाहिक प्रेम का। यह पर्व हर साल नई उमंग, नई प्रेरणा और अनंत उल्लास लेकर आता है। इसकी सांस्कृतिक गरिमा और पारंपरिक स्वरूप आज भी समाज को अपनी जड़ों से जोड़े हुए है।