छोटी गलतियों के लिए वकीलों को दंडित नहीं किया जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय
संकलित लेख : नीरज सोलंकी एडवोकेट।
“छोटी भूलों के लिए वकीलों को सज़ा नहीं दी जानी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय”
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“सुप्रीम कोर्ट: छोटी गलतियों पर वकीलों को सज़ा नहीं दी जा सकती”
नई दिल्ली, सागर और ज्वाला न्यूज 24 जुलाई 2025 — भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए कहा कि अधिवक्ताओं की “छोटी और अनजानी गलतियों” को आधार बनाकर उन्हें दंडित नहीं किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि वकीलों से भी गलतियां हो सकती हैं, और यदि वह गलती जानबूझकर नहीं की गई है, तो उस पर कठोर दंड उचित नहीं है।
यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ—जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन—ने एक विशेष याचिका की सुनवाई के दौरान की। इस याचिका में एक अधिवक्ता के खिलाफ की गई अनुशासनात्मक कार्रवाई को चुनौती दी गई थी, जिसमें कहा गया था कि वकील द्वारा कुछ दस्तावेज समय पर दाखिल न कर पाने के कारण अदालत की अवमानना मानी जाए।
कोर्ट की टिप्पणी: मानव त्रुटि को समझा जाए
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अधिवक्ताओं की भूमिका न्याय प्रणाली में अत्यंत महत्वपूर्ण होती है, और यदि उनसे कभी-कभी कोई छोटी भूल हो जाती है तो इसे “मानवीय त्रुटि” समझा जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा, “अगर कोई अधिवक्ता जानबूझकर अदालत को गुमराह नहीं करता या न्याय की प्रक्रिया को नुकसान नहीं पहुंचाता, तो उस पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करना अनुचित होगा।”
मामले की पृष्ठभूमि
इस केस में संबंधित अधिवक्ता से एक मुकदमे में आवश्यक दस्तावेजों की समय पर फाइलिंग में चूक हुई थी। निचली अदालत ने इसे गंभीर माना और उसके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही आरंभ कर दी। अधिवक्ता ने तर्क दिया कि यह त्रुटि जानबूझकर नहीं की गई थी, बल्कि तकनीकी कारणों और समय-सीमा के दबाव के चलते हुई।
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्वीकार किया कि पेशेवर कार्यों में, विशेष रूप से न्यायिक प्रक्रिया जैसे जटिल क्षेत्र में, कभी-कभी चूक हो सकती है। उन्होंने चेताया कि अगर हर छोटी चूक पर वकीलों को दंडित किया जाने लगे, तो इससे अधिवक्ताओं के आत्मबल पर असर पड़ेगा और न्यायिक प्रक्रिया में भय का वातावरण पैदा होगा।
न्यायपालिका और अधिवक्ता: परस्पर सहयोग की आवश्यकता
न्यायालय ने अपने फैसले में यह भी कहा कि न्यायपालिका और वकील—दोनों ही न्याय-प्रक्रिया के दो स्तंभ हैं। इन दोनों के बीच परस्पर विश्वास और सहयोग आवश्यक है।
कोर्ट ने निर्देश दिया कि अनुशासनात्मक कार्रवाई को तभी अमल में लाया जाए जब वकील की गलती स्पष्ट रूप से दुर्भावनापूर्ण हो या न्याय में बाधा डालने के उद्देश्य से की गई हो।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न केवल न्यायिक संवेदनशीलता को दर्शाता है, बल्कि यह अधिवक्ताओं को भी यह संदेश देता है कि न्यायालय उनके व्यावसायिक परिश्रम और ईमानदारी को महत्व देता है। यह फैसला आने वाले समय में वकीलों के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत बन सकता है, जिससे उन्हें न्यायिक कार्य में अधिक आत्मविश्वास और संरक्षण प्राप्त होगा।