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आधुनिक युग में पतियों की दुर्दशा: क्या महिलाएं बदल रहीं हैं प्रेम के मायने?

आधुनिक युग में पतियों की दुर्दशा: क्या महिलाएं बदल रहीं हैं प्रेम के मायने?

लेखक:  नीरज सोलंकी एडवोकेट प्रकाशन: सागर और ज्वाला न्यूज
दिनांक: 18 जून 2025
बीते दशक में जहां महिलाएं हर क्षेत्र में मजबूत हुई हैं, वहीं दूसरी ओर एक खामोश क्रांति उन पुरुषों के जीवन में भी घट रही है जो अपने वैवाहिक जीवन में भावनात्मक और मानसिक रूप से उपेक्षित महसूस कर रहे हैं।

🔹 क्या सच में पतियों की हो रही है दुर्दशा?

आधुनिक जीवनशैली, कार्य का दबाव, और सामाजिक अपेक्षाओं के बीच आज कई पुरुष खुद को एक “कम सुने जाने वाले” जीवनसाथी के रूप में पाते हैं।
कई पुरुष यह महसूस करते हैं कि घर में उनकी भूमिका केवल “कमाई करने वाले” व्यक्ति की बनकर रह गई है, जबकि उन्हें भावनात्मक समर्थन या संवाद की बहुत कमी महसूस होती है।

🔹 महिलाएं क्यों हो रही हैं प्रेम प्रसंग की ओर आकर्षित?

समाज में तेजी से हो रहे सामाजिक और डिजिटल परिवर्तन ने आज की स्त्री को नई पहचान दी है। लेकिन इस नई पहचान के साथ कुछ स्त्रियां **भावनात्मक रोमांच और नवीनता** की तलाश में वैवाहिक मर्यादाओं को भी पार कर रही हैं। इसके पीछे कुछ प्रमुख कारण हो सकते हैं:

  • भावनात्मक खालीपन: जब पत्नी को पति से संवाद, सराहना या रोमांस नहीं मिलता, तो वह बाहरी भावनात्मक सहारे की तलाश में जाती है।
  • सोशल मीडिया की भूमिका: फेसबुक, इंस्टाग्राम, चैट एप्स जैसे प्लेटफॉर्म्स ने पुराने दोस्तों या अजनबियों से जुड़ने को आसान बना दिया है।
  • फिल्मी और वेब सीरीज़ संस्कृति: आज के OTT प्लेटफॉर्म्स पर दिखाया जा रहा संबंधों का खुलापन महिलाओं को आकर्षित करता है।
  • विवाह में संवाद की कमी: यदि पति-पत्नी के बीच बातचीत, स्नेह या समझ में कमी आती है तो यह रिश्ते को कमजोर बना देता है।

🔹 पुरुषों की मानसिक स्थिति पर प्रभाव

इन सब परिस्थितियों का सीधा असर पुरुषों के आत्मसम्मान, मानसिक स्वास्थ्य और पारिवारिक जीवन पर पड़ता है। कई बार यह परिस्थिति उन्हें अवसाद, आत्मग्लानि और अकेलेपन की ओर धकेल देती है।

🔹 समाधान: संवाद, समझ और संतुलन

रिश्ते में किसी एक पक्ष को दोषी ठहराने की बजाय आवश्यकता है समानता और संवाद की। विवाह में न सिर्फ प्यार, बल्कि आपसी सम्मान और जिम्मेदारी का भाव भी बराबरी से होना चाहिए।
महिलाएं यदि अपने करियर और स्वतंत्रता को महत्व देती हैं, तो पुरुषों को भी अपने स्वाभिमान और भावनाओं की कद्र चाहिए।

🔹 निष्कर्ष

आज का समाज महिला सशक्तिकरण की ओर अग्रसर है, जो आवश्यक है, लेकिन यदि उसी समाज में पुरुषों की गरिमा और मानसिक स्थिति की अनदेखी की जाए, तो एक असंतुलित और विघटनकारी परिवार व्यवस्था खड़ी हो सकती है।
सशक्त स्त्री और सम्मानित पुरुष ही मिलकर एक मजबूत राष्ट्र और बेहतर पीढ़ी की नींव रखते हैं।

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