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लक्ष्मण गंज की प्राचीन रानी की बावड़ी : इतिहास के गर्भ से निकलती धरोहर, खुदाई में सामने आए रोचक तथ्य

लक्ष्मण गंज की प्राचीन रानी की बावड़ी: इतिहास के गर्भ से निकलती धरोहर, खुदाई में सामने आए रोचक तथ्य

मीनू गुप्ता, सागर और ज्वाला न्यूज।

संभल जिले में मिली तीन मंजिला बावड़ी, प्रशासन ने की जांच तेज, इतिहासकारों में बढ़ी उत्सुकता

उत्तर प्रदेश के जनपद संभल के चंदौसी में लक्ष्मण गंज स्थित एक प्राचीन बावड़ी का खुलासा हुआ है। यह ऐतिहासिक धरोहर तब चर्चा में आई जब सनातन सेवक संघ ने प्रशासन को क्षेत्र में अतिक्रमण की शिकायत दी। प्रशासन ने शिकायत का संज्ञान लेते हुए खुदाई का कार्य शुरू कराया। खुदाई के दौरान जो ढांचा सामने आया, उसने क्षेत्र के इतिहास में नई जान फूंक दी।

चंदौसी उत्तर प्रदेश के जनपद संभल के नगर चंदौसी में सनातन सेवक संघ की लिखित शिकायत पर जिला प्रशासन द्वारा लक्ष्मण गंज स्थित मुस्लिम बाहुल्य वाले एक क्षेत्र में खुदाई का कार्य प्रारंभ किया जहां पर खुदाई के दौरान पहले से ही निर्मित कुछ ढांचा दिखाई पड़ा जिसको देखकर नगर चंदौसी में हर ओर मंदिर मिलने तथा मंदिर की बावड़ी मिलने की खबर तेजी से फैल गई । इसके चलते हजारों की संख्या में लोग उस स्थान को देखते पहुंचने लगे।
मामले की गंभीरता को देखते हुए जिला प्रशासन द्वारा उक्त क्षेत्र में पुलिस बल को उपलब्ध कराया ताकि किसी तरह की कोई अप्रिय घटना घटित ना हो सके इसके पश्चात आज सुबह 11:00 के लगभग जिलाधिकारी संभल डॉ राजेंद्र पेंसिया एवं पुलिस अधीक्षक संभल कृष्ण कुमार विश्नोई उक्त स्थान पर पहुंचे तथा खुदाई से संबंधित तथ्यों की जानकारी प्राप्त की ।
इस अवसर पर मीडिया से बातचीत करते हुए जिलाधिकारी संभल ने बताया कि उक्त स्थान रानी की बावड़ी के नाम से तहसील चंदौसी के अभिलेखों में दर्ज है तथा इसकी खुदाई कराकर इसके बारे में सारे तथ्य पता करने का प्रयास किया जाएगा साथ ही साथ उन्होंने स्पष्ट निर्देश दिया कि जिन व्यक्तियों द्वारा उक्त क्षेत्र पर अतिक्रमण किया गया है उनको नोटिस जारी की जाए और शीघ्र अति शीघ्र क्षेत्र को खाली करने का निर्देश दिया जाए
उत्तर प्रदेश के जनपद संभल में तीन मंजिला ढांचा खुदाई में मिला है इसको लेकर जनपद संभल के जिलाधिकारी राजेंद्र पैंसिया ने बताया कि बावड़ी के नीचे के दो तल है एक तल मार्बल का बना हैं और ऊपर का तल ईंटों का बना हुआ है। किसी भी वाटर बॉडी पर अतिक्रमण की अनुमति नहीं है सभी को नोटिस देकर अतिक्रमण हटाया जाएगा

खुदाई से मिले तीन मंजिला संरचना के प्रमाण

खुदाई के दौरान एक तीन मंजिला संरचना के अवशेष मिले। जिलाधिकारी डॉ. राजेंद्र पेंसिया और पुलिस अधीक्षक कृष्ण कुमार विश्नोई ने स्थल पर पहुंचकर खुदाई कार्य का निरीक्षण किया। डॉ. पेंसिया ने बताया कि यह संरचना प्राचीन जल संचय प्रणाली का हिस्सा हो सकती है। नीचे के दो तल मार्बल से बने हुए हैं, जबकि ऊपर का हिस्सा ईंटों का है। उन्होंने कहा, “ऐसी धरोहरें हमारी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों का प्रतीक हैं। किसी भी जल स्रोत पर अतिक्रमण की अनुमति नहीं है।”

प्रशासन ने स्पष्ट किया कि क्षेत्र में अवैध कब्जा करने वालों को नोटिस जारी कर शीघ्र ही अतिक्रमण हटाया जाएगा। खुदाई का कार्य अभी जारी है, और भविष्य में और भी रोचक तथ्य सामने आने की संभावना है।

क्या है रानी की बावड़ी का इतिहास?

स्थानीय लोगों और इतिहासकारों का मानना है कि यह बावड़ी “रानी की बावड़ी” के नाम से जानी जाती है। तहसील चंदौसी के अभिलेखों में इस स्थान का उल्लेख है। इस बावड़ी को चंदौसी की प्राचीन जल प्रबंधन प्रणाली का हिस्सा माना जा रहा है।

रानी की वंशज शिप्रा गेरा ने दावा किया कि यह स्थान उनके पूर्वजों की संपत्ति है। उन्होंने कहा, “यह हमारी दादी रानी सुरेनबाला और दादा जगदीश कुमार जी की धरोहर है। यह बावड़ी हमारे पुस्तैनी फार्महाउस का हिस्सा थी। 1995 तक यह स्थान जीवित था।”

उन्होंने आगे कहा कि उनके बचपन में यहां पिकनिक मनाने की परंपरा थी। “हम अपने माता-पिता के साथ यहां घूमने आते थे। यह हमारा गौरवशाली इतिहास है। प्रशासन द्वारा इसे संरक्षित किया जा रहा है, जो हमारे परिवार के लिए गर्व की बात है।”

खेल का मैदान और प्राचीन संरचनाएं

नगर चंदौसी के वरिष्ठ अधिवक्ता संजय शर्मा ने अपने बचपन के दिनों की यादें साझा करते हुए बताया, “लक्ष्मण गंज का मैदान बच्चों के खेल के लिए एक आदर्श स्थान था। यहां ऊंचे-ऊंचे टीले, आम और बेल के पेड़ हुआ करते थे। यह क्षेत्र प्राकृतिक सुंदरता से भरा हुआ था।”

उन्होंने बताया कि इस क्षेत्र में एक बावड़ी और एक प्राचीन कुआं भी था। बावड़ी की सीढ़ियां नीचे जाते हुए चौड़ी होती थीं, जो प्राचीन स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है।

संजय शर्मा ने यह भी बताया कि वर्तमान में जहां “दिलशाद गार्डन” नाम का बैंक्वेट हॉल है, वहां पहले “होली चौराहा” हुआ करता था। वहां हिंदू समुदाय के लोग होली का पूजन करते थे।

कमरों और सुरंगों के संकेत

खुदाई के दौरान कमरों और सुरंगों के संकेत भी मिले हैं। शिप्रा गेरा ने कहा कि बचपन में उन्होंने इन सुरंगों में घुसने की कोशिश की थी, लेकिन अंदर जाने का साहस नहीं जुटा पाईं। यह सुरंगें शायद बावड़ी के साथ जुड़े जल प्रवाह के प्राचीन मार्ग हो सकते हैं।

इतिहासकारों और पुरातत्त्वविदों में बढ़ी उत्सुकता

इस खोज ने इतिहासकारों और पुरातत्त्वविदों के बीच उत्सुकता बढ़ा दी है। वे इस संरचना के पीछे के इतिहास और इसके महत्व को समझने के लिए गहन अध्ययन की योजना बना रहे हैं।

स्थानीय निवासियों का मानना है कि यह क्षेत्र चंदौसी के सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व का केंद्र था। यह भी संभावना जताई जा रही है कि इस बावड़ी का उपयोग न केवल जल प्रबंधन बल्कि धार्मिक अनुष्ठानों के लिए भी किया जाता था।

प्रशासन का रुख और भविष्य की योजनाएं

जिलाधिकारी डॉ. पेंसिया ने निर्देश दिया है कि खुदाई कार्य को प्राथमिकता दी जाए और इसके ऐतिहासिक तथ्यों को उजागर किया जाए। उन्होंने कहा, “हम इस क्षेत्र को अतिक्रमण मुक्त कर इसे एक संरक्षित स्थल के रूप में विकसित करना चाहते हैं। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इसे भविष्य की पीढ़ियों के लिए संरक्षित रखें।”

स्थानीय निवासियों की प्रतिक्रिया

इस खोज को लेकर स्थानीय निवासियों में उत्साह है। लोग बड़ी संख्या में खुदाई स्थल पर पहुंच रहे हैं और इस ऐतिहासिक धरोहर को देख रहे हैं। कुछ लोग इसे चंदौसी के गौरवशाली इतिहास की पुनरावृत्ति मान रहे हैं।

संरक्षण की आवश्यकता और भविष्य की राह

यह खोज केवल एक प्राचीन संरचना का खुलासा नहीं है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण की आवश्यकता को भी उजागर करती है। यह जरूरी है कि इस स्थान को संरक्षित किया जाए और इसे एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाए।

रानी की बावड़ी का रहस्य अभी पूरी तरह से उजागर नहीं हुआ है। खुदाई का कार्य जारी है, और उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही इस संरचना से जुड़े और भी रोचक तथ्य सामने आएंगे।

निष्कर्ष: प्राचीन धरोहरों को संरक्षित करना हमारा कर्तव्य

लक्ष्मण गंज में मिली यह बावड़ी हमारी प्राचीन धरोहरों का हिस्सा है। यह न केवल हमारी सांस्कृतिक संपदा है, बल्कि यह हमें हमारे पूर्वजों के जीवन और उनकी स्थापत्य कला के बारे में भी जानकारी देती है। इसे संरक्षित करना हमारी जिम्मेदारी है।

इस तरह की खोजें न केवल इतिहास की गहराई को उजागर करती हैं, बल्कि यह हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनती हैं।

 

 

 

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