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भारतीय इतिहास में विष घोलने का षड्यंत्र: रोहित मुखिया

भारतीय इतिहास में विष घोलने का षड्यंत्र

लेखक:  रोहित मुखिया मुरादाबाद।

सागर और ज्वाला न्यूज मुरादाबाद।

नालंदा विश्वविद्यालय का विध्वंस करने वाला बख्तियार खिलजी था। जिसने अनेकों पुस्तकालय और मठ मंदिर, बुद्ध विहारों को ध्वस्त किया ।

हिंदू और बौद्ध का आपसी हिंसा का कोई प्रमाण नहीं। हिंदू और बौद्ध में कभी दुर्भावना और वैमनस्य नही रहा । सामाजिक सुधार आंदोलन का दूसरा नाम बौद्ध धर्म है। ………..रोहित मुखिया 

इतिहास विश्व कि सबसे बड़ी अदालत होती है। और इतिहास का निर्णय हमेशा शक्तिशाली के पक्ष में होता है किसी देश को मिटाना हो तो उसको इतिहास से वंचित कर दो तो वह स्वत: ही समाप्त हो जाएगा।

भारत हजार वर्षों वर्षों के संघर्षकाल के बाद भी सामर्थ्यवान है क्योंकि हम चिर पुरातन नित्य नूतन रहे। परंतु वर्तमान में भारत के इतिहास में विष घोलने का षड्यंत्र किया जा रहा है। शक, हूर्ण, मुगल ,अंग्रेजों आक्रांतो की तरह ब्राह्मणों (हिंदू) को भी असहिष्णु घोषित करने की साजिश रची जा रही है ताकि हिंदू और बौद्ध की मध्य बैर भाव की दीवार खड़ी हो सके। वामपंथी इतिहासकार पुष्यमित्र शुंग को बौद्ध धर्म का विध्वंस कहते हैं सर्वप्रथम पुष्यमित्र के ब्राह्मण होने का कोई प्रमाण नहीं है। दूसरा बौद्ध धर्म विरोधी हिंसा के उल्लेख 400 से 1700 साल बाद के हैं। हेनुत्सांग और इतिसंग के स्मरण में पुष्यमित्र को बौद्ध विरोधी होना साबित नहीं करते। और किसी हिंदू मंदिर या मत के अवशेष नहीं मिलते जिन्हे पुष्यमित्र और उनके वंशजों ने तोड़कर बनाया हो। बल्कि पुष्यमित्र के पुत्र अग्निमित्र को अमात्य ही बौद्ध भिक्षु था और बौद्ध सपूत कल के एक भरहुत का शिलालेख पुष्यमित्र के शासनकाल में बना। भारत पर आक्रमण करने वाले हूर्ण इस्लाम ने बौद्ध विहारों को ध्वस्त किया और अनेकों बौद्ध भिक्षों को कत्लेआम किया। नालंदा विश्वविद्यालय का विध्वंस करने वाला बख्तियार खिलजी था। जिसने अनेकों पुस्तकालय और मठ मंदिर, बुद्ध विहारों को ध्वस्त किया । जिसका बौद्ध लामा धर्म स्वामी ने नालंदा की नृशंसता का विस्तार किया। अतः हिंदू और बौद्ध का आपसी हिंसा का कोई प्रमाण नहीं। हिंदू और बौद्ध में कभी दुर्भावना और वैमनस्य नही रहा । सामाजिक सुधार आंदोलन का दूसरा नाम बौद्ध धर्म है। और धम्म पद में कहा गया है जो चित्र को भी सभी देशों से मुक्त कर आसन पर आसान हो ध्यान रथ रहे तथा निरंतर उत्तम अर्थ की ओर प्राप्ति में संकलन रहे वही ब्राह्मण है।।

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