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मंगलवार 18जून को मनेंगी निर्जला एकादशी : आचार्य ऋतुपर्ण कृष्ण

मंगलवार 18जून को मनेंगी निर्जला एकादशी : आचार्य ऋतुपर्ण कृष्ण

सुधीर शर्मा, सागर और ज्वाला न्यूज

मंगलवार 18जून को मनेंगी निर्जला एकादशी : आचार्य ऋतुपर्ण कृष्ण

चन्दौसी -निर्जला एकादशी का व्रत 17 जून को रखना है या 18 जून को? सवाल इसलिए है क्योंकि निर्जला एकादशी के लिए आवश्यक ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी तिथि 17 और 18 जून यानी दोनों दिन है. ऐसे में कैसे तय करें कि निर्जला एकादशी का व्रत कब है. मान्यताओं के अनुसार, जिस दिन एकादशी तिथि में सूर्योदय होगा, उस दिन ही व्रत रखा जाएगा. लेकिन इस बार दोनों ही दिन एकादशी तिथि में सूर्य का उदय हो रहा है. दोनों ही दिन उदयातिथि प्राप्त हो जा रही है.इस विषय में श्रीमद् भागवत प्रवक्ता आचार्य ऋतुपर्ण शर्मा ने बताया कि पंचांग के अनुसार देखा जाए तो इस बार ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी की तिथि 17 जून सोमवार को प्रात: 04 बजकर 43 मिनट पर ही शुरू हो रही है और उस दिन सूर्योदय 05:23 AM पर हो रहा है. वहीं ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी तिथि का समापन 18 जून मंगलवार को 07:24 AM  पर होगा. उस दिन भी सूर्योदय 05:23 AM पर हो रहा है. ऐसे में दोनों ही दिन ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी तिथि है.यदि इस तरह की स्थिति पैदा होती है तो खासकर एकादशी व्रत में द्वादशी तिथि के समापन का विचार करते हैं क्योंकि व्रत का पारण द्वादशी के समापन से पूर्व होता है. कहने का अर्थ यह है कि हरि वासर के समय में एकादशी का पारण वर्जित है. द्वादशी तिथि के प्रथम चरण के बीतने के बाद ही पारण होता है.अब द्वादशी तिथि 18 जून को 07:24 AM से शुरू होकर 19 जून को 07:28 A M पर खत्म होगी. ऐसे में निर्जला एकादशी का व्रत 18 जून को रखना सही होगा और इसका पारण 19 जून को द्वादशी तिथि के समापन समय 07:28 ए एम से पूर्व कर लेना होगा.निर्जला एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा आप सूर्योदय के बाद से कर सकते हैं क्योंकि उस समय शिव योग और स्वाति नक्षत्र है. 18 जून को लाभ-उन्नति मुहूर्त 10:38 प्रातः से 12:22 सायं तक और चर-सामान्य 08:53 प्रातः से 10:38 प्रातः तक है.निर्जला एकादशी व्रत का पारण 19 जून बुधवार को सुबह 05:24 ए एम से 07:28 प्रातः के बीच कर लेना चाहिए.निर्जला एकादशी व्रत का महत्व बताते हुए कहा कि
जो लोग 18 जून को निर्जला एकादशी व्रत रखेंगे, वे जान लें कि इस व्रत को करने से सभी पाप मिट जाते हैं. व्यक्ति को जीवन के अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है. यह एक मात्र ऐसा व्रत है, जिसे भीमसेन ने भी किया था, जिसकी वजह से निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं.

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