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स्वदेशी के प्रथम बलिदानी बाबू गेनू की पुण्यतिथि पर आयोजित विचार गोष्ठी जिला रोजगार सृजन केंद्र सम्पन्न

मुरादाबाद, सागर और ज्वाला न्यूज।

सागर और ज्वाला न्यूज।स्वदेशी के प्रथम बलिदानी बाबू गेनू सैद जी की पुण्यतिथि पर आयोजित विचार गोष्ठी जिला रोजगार सृजन केंद्र दिल्ली रोड पर आयोजित की गई।
गोष्ठी का प्रारंभ बाबू गेनू जी को श्रद्धांजलि एवं भारत माता के चित्र पर माल्यार्पण कर हुआ।

गोष्ठी में उपस्थित अखिल भारतीय सह विचार विभाग प्रमुख डॉ राजीव कुमार ने स्वदेशी आंदोलन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि स्वदेशी आंदोलन गांधी जी के नमक सत्याग्रह से शुरू होकर 1991 में स्वदेशी जागरण मंच की स्थापना के साथ आगे बढ़ा और अब यह एक जन आंदोलन बन गया है। आज स्वदेशी एक ब्रांड बन चुका है और प्रत्येक भारतीय स्वदेशी विचार एवं स्वदेशी वस्तुओं से जुड़ना चाहता है। आज बाबू गेनू जी की तरह बलिदान देने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि स्वदेशी उद्योगो एवं स्वदेशी विचारों से जोड़कर उनका प्रचार प्रसार करना है स्वदेशी ही विकसित भारत का मंत्र है।


देशप्रेम की भावना से वशीभूत होकर सामान्य से दिखने वाले बाबू गेनू सैद ने स्वदेशी आंदोलन में बहुत बड़ा काम कर दिया था। गेनू बाबू का जन्म 1960 में पुणे जिले के ग्राम महालुंगे पदवाल में हुआ था। आपके गांव के पास ही कुल गौरव छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म हुआ था। गेनु बाबू बचपन में बहुत आलसी बालक थे। देर तक सोना, दिनभर खेलना, पढ़ाई में कोई रुचि नहीं थी। दुर्भाग्यवश पिता शीघ्र चले गए। उसके बाद बड़े भाई भीम उनके संरक्षक बन गए। वह सब आपसे बहुत कठोर थे। गेनु ने अपने भाई की डांट से बचने के लिए मुंबई में एक कपड़ा मिल में नौकरी कर ली जहाँ उनकी मां भी काम करती थी। उन्हीं दिनों देश में स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने का और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आंदोलन जोरों पर था। 22 वर्षीय बाबू गेनू भी इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लेने लगे। अपने साथियों को एक-एक करके वह स्वदेशी का महत्व बताया करते थे। 26 जनवरी. 1930 को संपूर्ण स्वराज्य मांग आंदोलन में बाबू गेनू की सक्रियता देखकर उन्हें तीन महीने के लिए जेल भेज दिया गया पर इससे बाबू के मन की स्वतंत्रता प्राप्ति की चाह और तीव्र हो गई।

12 दिसंबर 1930. मुंबई के कालबादेवी इलाके में एक गोदाम था. आंदोलनकारियों को ख़बर मिली कि वहां से विदेशी माल लेकर दो ट्रक मुंबई की ही कोर्ट मार्केट जाएंगे. इस काम को रोकने की ज़िम्मेदारी बाबू गेनू और उनके दल ‘तानाजी पथक’ के सर आ गई. हनुमान रोड पर इसे रोकने का इरादा बना. भनक पाते ही वहां भीड़ भी इकठ्ठा हो गई.अंग्रेज़ अफसर फ्रेज़र को भी इसकी भनक लग गई. उसने भारी तादाद में पुलिस बुला ली. सारे क्रांतिकारी ट्रक के रास्ते में खड़े हो गए. पुलिस उन्हें खींच-खींच कर दूर करती रही. क्रांतिकारी फिर आते रहे. आख़िरकार फ्रेज़र चिढ़ गया. ट्रक के आगे तनकर खड़े बाबू गेनू को उसने परे हटाना चाहा. वो नहीं हटे तो उसने ट्रक ड्राइवर से कहा ट्रक चला दो. कोई मरता है तो मर जाने दो. ड्राइवर की हिम्मत नहीं हुई. गुस्से में उफनते अंग्रेज़ अफसर ने उसे स्टीयरिंग से धक्का देकर हटा दिया और खुद स्टीयरिंग संभाल ली. बाबू गेनू सीना तानकर खड़े रहे. फ्रेज़र ने ट्रक चला दिया. ट्रक बाबू गेनू को कुचलता हुआ गुज़र गया. सड़क ख़ून से तरबतर हो गई.

जिला संयोजक डॉक्टर ए के अग्रवाल ने बाबू गेनू जी के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए बताया कि किस प्रकार 22 वर्ष की अल्प आयु में 12 दिसंबर 1930 को विदेशी कपड़ों से लदे ट्रक के सामने लेट कर उन्होंने अपने प्राणों का बलिदान दिया था। उन्होंने कहा कि वे हम सभी के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।
प्रांत संयोजक कपिल नारंग में कहा की पहले स्वदेशी का नाम लेते थे तो लोग कहते थे की बैलगाड़ी के युग में ले जाने की बात कर रहे हैं परंतु आज स्वदेशी की भावना जन-जन में जागृत हो चुकी है परिस्थितियों भी अनुकूल हैं भारत के उद्योग भी विकसित हो रहे हैं सही समय है कि अगर हम लोग प्रयास करें तो भारत शीघ्र ही विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
प्रदीप अग्रवाल ने रामप्रसाद बिस्मिल जी का रचित गीत मेरा मन हो स्वदेशी प्रस्तुत किया।
डॉ अनीता अग्रवाल, मीनू अरोड़ा हिमांशु मेहरा, डॉ राजेश अग्रवाल ने भी अपने विचार रखे।
संचालन विभाग संयोजक प्रशांत शर्मा ने किया।
गोष्ठी में मुख्य रूप से पूनम चौहान, काशीष चौहान, नीरज सोलंकी, प्रदीप, निशु, पुष्कर, नीलम जैन, नीलम जैन,कुलदीप सिंह आदि रहे।

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